कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो किसी भी प्रकार का महान कार्य करते समय, इस बात का ख्याल रखते हैं क़ि उक्त कार्य से उनकी ख्याति न हो | कार्य के पीछे यश लोलुपता न झलके | मनस्वी लोगो क़ि यही पहचान हुआ करती है | वे किसी भी कार्य क़ि सिद्धि केवल 'कर्म' करने भर मै खोजते हैं | ऐसी वैराग्यवृत्ति के लोगो में से एक थे, फतेहपुर के श्री कन्हैयालाल चितलांगिया | औघड़दानी ऐसे क़ि अपना सर्वस्व लुटा देते ,पर अगले को पता ही नहीं चलने देते क़ि यह उपकार किसने किया | कन्हैयालालजी अपने सूत्रों से जरूरतमंद लोगो का पता कर लिया करते थे | किसी न किसी बहाने से जरूरतमंद के घर जाते और उसके घर में कही न कही रुपये छुपा आते | बाद में वह व्यक्ति पूछता तो बड़ी सफाई से मुकर जाते-"ना भाई ना, मैं ऐसा क्यों करूँगा, बनिए का बेटा हूँ, दूँगा तो पाँच आदमियों के बीच दूँगा | तुम इन पैसो की किसी और के सामने भी चर्चा मत करना,वर्ना ज़माना बड़ा ख़राब है, कोई कह देगा की ये तो मेरे हैं |" अगला निरुत्तर होकर चला जाता | अपनी अज्ञात दानशीलता को वे भरसक छुपाते | कलकत्ता में रहते थे | एक ओर गांधी जी से प्रभावित थे तो दूसरी ओर क्रांतिकारियों की इस भांति छुप छुप कर मदद करते क़ि वे हैरान रह जाते क़ि जगत में ऐसे महान अवतार भी हैं जो मनुष्य के वेश में भगवान के सदृश्य हैं | क्रांतिकारियों क़ि मदद वे केवल पैसे से ही नहीं किया करते थे, बल्कि कई बार वे बहुत बड़ा संकट अपने गले में डालकर भी उनके सहयोगी बनते | एक बार क्रांतिकारियों को छुपाने के लिए तुरंत जगह क़ि आवश्यकता थी | कन्हैयालाल जी ऩे उन्हें अपने कपडे के गोदाम में पनाह दे दी | अंग्रेजी पुलिस ढूँढते-ढूँढते उनके यहाँ पहुँची तो बड़ी अभिनयशीलता से कहा-राम-राम, हम बनिए लोग ऐसे काम करेंगे क्या ? हम तो व्यापारी हैं केवल व्यापर करते हैं, आइये हमारी गद्दी छान मारिये |" अंग्रेज पुलिस अफसर चले गए | पर दुनिया में ईर्ष्यालु लोगों क़ि कमी नहीं है | किसी ऩे अंग्रेज अधिकारियों के काँ भर दिए क़ि कन्हैयालाल चितलांगिया कलकत्ता में रास बिहारी बोस जैसे अनेक खूंखार क्रांतिकारियों के मददगार हैं | फिर क्या था, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और काले पानी क़ि सजा सुना कर जेल में डाल दिया गया | वे छः माह तक कठोर यातनामयी जेल में रहे | अपने मृदु व्यवहार के कारण जेल में भी वे लोगो के प्रिय हो गए | एक दिन उन्होंने देखा क़ि उनकी जेल का जेलर बहुत उदास और सुस्त सा घूम रहा था | उन्होंने पूछ लिया- "कहो जेलर साहब आज उदास और सुस्त कैसे दिखाई दे रहे हैं ?" जेलर ऩे कहा -"क्या करे घर से तार आया है, पता नहीं क्या अपशकुन की बात होगी, मुझ से तार पढ़ा नहीं जा रहा है |" जेलर ऩे अपनी विवशता जताई तो जेल के सींकचो के ऩे हाथ बढ़ा कर चितलांगिया ऩे कहा- "लाईये, देखूं तो क्या लिखा है इस तार में |" जेलर ऩे तार पकड़ा दिया | चितलांगिया तत्कालीन समय के बी.ए. थे | उन्होंने तार पढ़ा और मुस्कराने लगे | चितलांगिया ऩे कहा- " जेलर साहब, इनाम दो तो बताएं क्या लिखा है तार में |" जेलर ऩे कहा- " देंगे |" चितलांगिया ऩे कहा-" बधाई हो ! आपके पोता हुआ है |" इस पर जेलर बहुत खुश हुआ और किसी तरह उनकी काले पानी की सजा माफ़ करवा दी | पर उन्हें यह आदेश दिया गया की पाँच वर्ष तक वे बंगाल की धरती पर नहीं आ सकेंगे | जेल में वे बीमार रहने लगे थे | फिर वे फतेहपुर आये और यहीं रहने लगे | चितलांगिया दानवीर सेठ सोहन दूगड़ के अन्यतम मित्र थे | खूब धन दौलत कमाने के बावजूद चितलांगिया ऩे तनिक भी व्यक्तिगत सम्पति का संग्रह नहीं किया | उनके जीवन की कितनी ही घटनाएँ हैं जो आज हमारे लिए प्रेरणा प्रसंगों से कम नहीं हैं |