Sunday, September 12, 2010

श्री सारनाथ मंदिर

फतेहपुर नगर की स्थापना से पूर्व नवाब फ़तेह खां वर्त्तमान फतेहपुर से दक्षिण में तीन कोस पर स्थित ग्राम रिणाऊ   में आकर रहने लगा और नगर व किले का निर्माण कार्य प्रारंभ करवा दिया | जिस स्थान पर किले का निर्माण होना था, वह एक निर्जन स्थान था | वहां एक महात्मा अपनी धूणी तपते थे. जब निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ तो नवाब के आदमियों ने महात्मा को धूणी हटाने के लिए कहा, लेकिन महात्मा ने धूणी नहीं हटाई | कारीगरों ने कहा की धूणी नहीं हटाने से किला बांका हो जाएगा | महात्मा ने कहा की "किला तो बांका ही अच्छा होता है." और धूणी हटाने से मन कर दिया | कारीगरों ने यह बात नवाब को बताई | नवाब ने महात्मा को बलपूर्वक हटाने का आदेश दिया | नवाब की आज्ञा पाकर जब सिपाही धूणी को हटाने लगे तो महात्मा जी कहा " रुको भाई |" ऐसा कहकर महात्मा जी धूणी की जलती हुई लकड़ियों को अपनी झोली में डालकर, अपने कंधे पर रखकर वह से पूर्व दिशा की ओर चल दिए | महात्मा जी का यह चमत्कार देखकर सिपाही दांग रह गए और उन्होंने नवाब को इसकी सूचना दी | नवाब तुरंत घोड़े पर सवार होकर महात्मा जी के पीछे चल पड़ा | थोड़ी दूर पर ही (वर्त्तमान चूने में) उसे महात्मा जी मिल गए | नवाब उनके चरणों में गिरकर वापिस चलने की प्रार्थना करने लगा, लेकिन महात्मा जी ने वापिस चलने से तो मना कर दिया,परन्तु नवाब के जिद करने पर वहीँ रुकने पर राजी हो गए और उसी स्थान पर अपनी धूणी दाल दी | यह चमत्कारी संत ही श्री गंगानाथ महाराज थे | संवत 1524 में महात्मा गंगानाथ जी ने जीवित समाधि  ली थी जिस पर मंदिर का निर्माण नवाब फ़तेह खां ने करवाया | आगे चलकर उनके शिष्य संत सेवानाथ जी हुए | उन्होंने 1549 में जीवित समाधि  ली जिस पर आठ खम्भों वाली छतरी का निर्माण दौलत खां ने करवाया | इस पर एक फारसी भाषा का शिलालेख भी लगा है जो वर्त्तमान में भी है | बाद में इस शिष्य परम्परा में महान संत श्री सारनाथ जी हुए जिन्होंने 1850 में यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया जो अब भी चूने में स्थित है | वर्त्तमान में इस मंदिर में संत शिरोमणि श्री रतिनाथ जी महाराज विराजते है | इन्होने मंदिर को भव्य एवम विशाल रूप प्रदान किया है | इनके आशीर्वाद से यहाँ विशाल जागरण व धार्मिक अनुष्ठान चलते रहते है |

Wednesday, September 8, 2010

गिरजों गुरु

फतेहपुर में काफी समय पूर्व एक सिद्ध तांत्रिक हुए हैं श्री गिरिराज गुरु, जिन्हें गिरजो गुरु के नाम से जानते थे. उनके कई चमत्कारी कार्य लोगों की जुबान पर आज भी प्रचलित हैं. एक बार की बात है की बीकानेर के यति द्वारा अपने तंत्र के प्रभाव से कहीं से गेहूं की बोरियाँ आकाश मार्ग से लायी जा रही थीं. ये बोरियाँ फतेहपुर के आकाश मार्ग से जब जा रही थीं तो गिरजो गुरु ने यह दृश्य देखा. उन गेहूं की बोरियों को गिरजो गुरु ने अपने तन्त्र बल से फतेहपुर में ही उतार लिया. कहते हैं उन्हीं बोरियों के रुपयों से गुरु ने एक कुँए का निर्माण कराया जो आज भी गुरु के कुँए के नाम से विख्यात है. गुरु के तंत्र प्रभाव का एक और उदाहरण लोगो को याद है जब उन्होंने अपने तंत्र बल के प्रभाव से बाजार में सरावगी रथ यात्रा का रथ मार्ग में ही रोक दिया था.

Saturday, September 4, 2010

चौक च्यानणी भादूड़ो

जिस प्रकार लड़कियों का सिंजारा तीज पर मनाया जाता है उसी प्रकार अपने फतेहपुर में गणेश चतुर्थी को चौक च्यानणी  यानी लड़कों के सिंजारे के रूप में मनाया जाता था. भाद्रपद का महीना लगते ही सिक्षा जगत से जुड़े छात्रों व गुरुजनों में उत्साह भर जाया करता था. दोनों ही वर्ग बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे शालीनता और हुडदंग की मस्तियों से भरे त्यौहार चौक च्यानणी का. चार दिन तक सभी विद्यार्थी मौज उड़ाते और रोज उन्हें लड्डू खाने को मिलते. घरों की पोली के आगे विभिन्न देवों का स्वांग रचाए बालक टेर लगाते ' चौक च्यानणी भादुड़ो दे दे माई लाडूड़ो.' बालकों को लड्डू खिलाये जाते और गुरुजनों को भेंट व नारियल समर्पित कर उनके प्रति कृतज्ञता व गुरु भक्ति प्रदर्शित की जाती. इस दौरान झांकियों के साथ साथ नगर से जुड़े गीत गाये जाते जिनमें नगर की परम्पराओं का लालित्यपूर्ण वर्णन होता था. धीरे धीरे समय गुजरने के साथ साथ चौक च्यानणी का त्यौंहार भी कालावाशेष बन कर रह गया है . आज के बालकों के लिए चौक च्यानणी केवल किताबों तक ही सीमित हो  गयी है