Wednesday, December 15, 2010

वे जरूरतमंदों की गुप्त मदद करते थे

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो किसी भी प्रकार का महान कार्य करते समय, इस बात का ख्याल रखते हैं क़ि उक्त कार्य से उनकी ख्याति न हो | कार्य के पीछे यश लोलुपता न झलके | मनस्वी लोगो क़ि यही पहचान हुआ करती है | वे किसी भी कार्य क़ि सिद्धि केवल 'कर्म' करने भर मै खोजते हैं | ऐसी वैराग्यवृत्ति के लोगो में से एक थे, फतेहपुर के श्री कन्हैयालाल चितलांगिया | औघड़दानी ऐसे क़ि अपना सर्वस्व लुटा देते ,पर अगले को पता ही नहीं चलने देते क़ि यह उपकार किसने किया | कन्हैयालालजी अपने सूत्रों से जरूरतमंद लोगो का पता कर लिया करते थे | किसी न किसी बहाने से जरूरतमंद के घर जाते और उसके घर में कही न कही रुपये छुपा आते | बाद में वह व्यक्ति पूछता तो बड़ी सफाई से मुकर जाते-"ना भाई ना, मैं ऐसा क्यों करूँगा, बनिए का बेटा हूँ, दूँगा तो पाँच आदमियों के बीच दूँगा | तुम इन पैसो की किसी और के सामने भी चर्चा मत करना,वर्ना ज़माना बड़ा ख़राब है, कोई कह देगा की ये तो मेरे हैं |" अगला निरुत्तर होकर चला जाता | अपनी अज्ञात दानशीलता को वे भरसक छुपाते | कलकत्ता में रहते थे | एक ओर गांधी जी से प्रभावित थे तो दूसरी ओर क्रांतिकारियों की इस भांति छुप छुप कर मदद करते क़ि वे हैरान रह जाते क़ि जगत में ऐसे महान अवतार भी हैं जो मनुष्य के वेश में भगवान के सदृश्य हैं | क्रांतिकारियों क़ि मदद वे केवल पैसे से ही नहीं किया करते थे, बल्कि कई बार वे बहुत बड़ा संकट अपने गले में डालकर भी उनके सहयोगी बनते | एक बार क्रांतिकारियों को छुपाने के लिए तुरंत जगह क़ि आवश्यकता थी | कन्हैयालाल जी ऩे उन्हें अपने कपडे के गोदाम में पनाह दे दी | अंग्रेजी पुलिस ढूँढते-ढूँढते उनके यहाँ पहुँची तो बड़ी अभिनयशीलता से कहा-राम-राम, हम बनिए लोग ऐसे काम करेंगे क्या ? हम तो व्यापारी हैं केवल व्यापर करते हैं, आइये हमारी गद्दी छान मारिये |" अंग्रेज पुलिस अफसर चले गए | पर दुनिया में ईर्ष्यालु लोगों क़ि कमी नहीं है | किसी ऩे अंग्रेज अधिकारियों के काँ भर दिए क़ि कन्हैयालाल चितलांगिया कलकत्ता में रास बिहारी बोस जैसे अनेक खूंखार क्रांतिकारियों के मददगार हैं | फिर क्या था, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और काले पानी क़ि सजा सुना कर जेल में डाल दिया गया | वे छः माह तक कठोर यातनामयी जेल में रहे | अपने मृदु व्यवहार के कारण जेल में भी वे लोगो के प्रिय हो गए | एक दिन उन्होंने देखा क़ि उनकी जेल का जेलर बहुत उदास और सुस्त सा घूम रहा था | उन्होंने पूछ लिया- "कहो जेलर साहब आज उदास और सुस्त कैसे दिखाई दे रहे हैं ?" जेलर ऩे कहा -"क्या करे घर से तार आया है, पता नहीं क्या अपशकुन की बात होगी, मुझ से तार पढ़ा नहीं जा रहा है |" जेलर ऩे अपनी विवशता जताई तो जेल के सींकचो के ऩे हाथ बढ़ा कर चितलांगिया ऩे कहा- "लाईये, देखूं तो क्या लिखा है इस तार में |" जेलर ऩे तार पकड़ा दिया | चितलांगिया तत्कालीन समय के बी.ए. थे | उन्होंने तार पढ़ा और मुस्कराने लगे | चितलांगिया ऩे कहा- " जेलर साहब, इनाम दो तो बताएं क्या लिखा है तार में |" जेलर ऩे कहा- " देंगे |" चितलांगिया ऩे कहा-" बधाई हो ! आपके पोता हुआ है |" इस पर जेलर बहुत खुश हुआ और किसी तरह उनकी काले पानी की सजा माफ़ करवा दी | पर उन्हें यह आदेश दिया गया की पाँच वर्ष तक वे बंगाल की धरती पर नहीं आ सकेंगे | जेल में वे बीमार रहने लगे थे | फिर वे फतेहपुर आये और यहीं रहने लगे | चितलांगिया दानवीर सेठ सोहन दूगड़ के अन्यतम मित्र थे | खूब धन दौलत कमाने के बावजूद चितलांगिया ऩे तनिक भी व्यक्तिगत सम्पति का संग्रह नहीं किया | उनके जीवन की कितनी ही घटनाएँ हैं जो आज हमारे लिए प्रेरणा प्रसंगों से कम नहीं हैं |

Wednesday, October 20, 2010

वे एक मिसाल थे

फतेहपुर में श्री दुर्गादत्त भूतिया अपने जमाने के जाने माने व प्रसिद्ध वैद्य थे |  भूतिया जी औषधीय विधा के अलावा शाश्त्रीय संगीत के भी वे अच्छे ज्ञाता थे | श्री विशंभर जी गोस्वामी आपके पक्के जोडीदार थे, दोनों ही शाश्त्रीय संगीत में माहिर थे | लोग बाग़ इन दोनों का संगीत सुनने को बेताब रहा करते थे |

दुर्गादत्त जी  फतेहपुर नगर पालिका के पार्षद भी थे | उस जमाने में नगर की सफाई व कचरा उठाने की व्यवस्था भैंसा गाड़ी से की जाती थी और भैसा गाडी की व्यवस्था करने वाले भैसों के चारे व ग्वार में कमीशन खाया करते थे | इस ढंग की बातें जब भातरा जी की नजर में आई तो उन्होने उसी क्षण नगर पालिका की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया | उक्त घटना आज भी नगर के राजनीतिक क्षेत्र में एक मिसाल के रूप में सुनाई जाती है | 

Sunday, October 3, 2010

पुराणी पढाई

 फतेहपुर में पहले पौशालाओं (पाठशाला) में मारजा पद्धति से पढाई कराई जाति थी | तत्कालीन अध्यापकों के लिए यह अत्यंत आवश्यक था क़ि उकी 'वाणिकी' तथा 'गणित' की जानकारी बहुत पुख्ता होनी चाहिए, क्योंकि दोनों ही विषयों का वास्ता हिसाब-किताब से था | गणित की पुस्तक में 'लीलावती' के सवाल बहुत कठिन मने जाते थे | पर आज भी जिन्होंऩे 'लीलावती' पढ़ रखी है, उन्हें आधुनिक यन्त्र केलक्युलेटर की आवश्यकता नहीं पड़ती है | गुरुजनों की परीक्षा लेने के लिए उनसे भी नीचे लिखित प्रकार के प्रश्न पूछे जाते थे | आप भी अपनी बुद्धिमता का परीक्षण कीजिये :-
1. एक समय वृषभानुसुता, मुक्तामल टूटी  सेज रहये सैंतीस, अर्थ धरणी पर छूटी
भागन भये नौ अंश, सखी ऩे पांचवा भाग चुराया मोहे हाथ लगा तिरसठ, सखी को सत्तर पाया
भणत पुरातन सुंदरी, सुणियो सज्जनहार नौसंन्दे ऩे बूझियो, कित्तै मोतियन को हार

2. एक समय की बात है चंद्रमुखी एक नार दर्पण में मुख देखकर करे नार सिणगार
करे नार सिणगार हार कूं अपने कंठ जचाया देख हार अपरसण किन्य झट-पट तोड़ बगाया
चालीस मोती पद्य गोद में अंचल गिरया सवाया तीज भाग पद्य भूमि पर हिस्सा नौ का पता न पाया 
हार में आधा अटका सेज में पन्द्रहा पटक्या हिसाब का यह परवाना कितने मोती हर बीच
जल्दी हमें बताना |

Sunday, September 12, 2010

श्री सारनाथ मंदिर

फतेहपुर नगर की स्थापना से पूर्व नवाब फ़तेह खां वर्त्तमान फतेहपुर से दक्षिण में तीन कोस पर स्थित ग्राम रिणाऊ   में आकर रहने लगा और नगर व किले का निर्माण कार्य प्रारंभ करवा दिया | जिस स्थान पर किले का निर्माण होना था, वह एक निर्जन स्थान था | वहां एक महात्मा अपनी धूणी तपते थे. जब निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ तो नवाब के आदमियों ने महात्मा को धूणी हटाने के लिए कहा, लेकिन महात्मा ने धूणी नहीं हटाई | कारीगरों ने कहा की धूणी नहीं हटाने से किला बांका हो जाएगा | महात्मा ने कहा की "किला तो बांका ही अच्छा होता है." और धूणी हटाने से मन कर दिया | कारीगरों ने यह बात नवाब को बताई | नवाब ने महात्मा को बलपूर्वक हटाने का आदेश दिया | नवाब की आज्ञा पाकर जब सिपाही धूणी को हटाने लगे तो महात्मा जी कहा " रुको भाई |" ऐसा कहकर महात्मा जी धूणी की जलती हुई लकड़ियों को अपनी झोली में डालकर, अपने कंधे पर रखकर वह से पूर्व दिशा की ओर चल दिए | महात्मा जी का यह चमत्कार देखकर सिपाही दांग रह गए और उन्होंने नवाब को इसकी सूचना दी | नवाब तुरंत घोड़े पर सवार होकर महात्मा जी के पीछे चल पड़ा | थोड़ी दूर पर ही (वर्त्तमान चूने में) उसे महात्मा जी मिल गए | नवाब उनके चरणों में गिरकर वापिस चलने की प्रार्थना करने लगा, लेकिन महात्मा जी ने वापिस चलने से तो मना कर दिया,परन्तु नवाब के जिद करने पर वहीँ रुकने पर राजी हो गए और उसी स्थान पर अपनी धूणी दाल दी | यह चमत्कारी संत ही श्री गंगानाथ महाराज थे | संवत 1524 में महात्मा गंगानाथ जी ने जीवित समाधि  ली थी जिस पर मंदिर का निर्माण नवाब फ़तेह खां ने करवाया | आगे चलकर उनके शिष्य संत सेवानाथ जी हुए | उन्होंने 1549 में जीवित समाधि  ली जिस पर आठ खम्भों वाली छतरी का निर्माण दौलत खां ने करवाया | इस पर एक फारसी भाषा का शिलालेख भी लगा है जो वर्त्तमान में भी है | बाद में इस शिष्य परम्परा में महान संत श्री सारनाथ जी हुए जिन्होंने 1850 में यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया जो अब भी चूने में स्थित है | वर्त्तमान में इस मंदिर में संत शिरोमणि श्री रतिनाथ जी महाराज विराजते है | इन्होने मंदिर को भव्य एवम विशाल रूप प्रदान किया है | इनके आशीर्वाद से यहाँ विशाल जागरण व धार्मिक अनुष्ठान चलते रहते है |

Wednesday, September 8, 2010

गिरजों गुरु

फतेहपुर में काफी समय पूर्व एक सिद्ध तांत्रिक हुए हैं श्री गिरिराज गुरु, जिन्हें गिरजो गुरु के नाम से जानते थे. उनके कई चमत्कारी कार्य लोगों की जुबान पर आज भी प्रचलित हैं. एक बार की बात है की बीकानेर के यति द्वारा अपने तंत्र के प्रभाव से कहीं से गेहूं की बोरियाँ आकाश मार्ग से लायी जा रही थीं. ये बोरियाँ फतेहपुर के आकाश मार्ग से जब जा रही थीं तो गिरजो गुरु ने यह दृश्य देखा. उन गेहूं की बोरियों को गिरजो गुरु ने अपने तन्त्र बल से फतेहपुर में ही उतार लिया. कहते हैं उन्हीं बोरियों के रुपयों से गुरु ने एक कुँए का निर्माण कराया जो आज भी गुरु के कुँए के नाम से विख्यात है. गुरु के तंत्र प्रभाव का एक और उदाहरण लोगो को याद है जब उन्होंने अपने तंत्र बल के प्रभाव से बाजार में सरावगी रथ यात्रा का रथ मार्ग में ही रोक दिया था.

Saturday, September 4, 2010

चौक च्यानणी भादूड़ो

जिस प्रकार लड़कियों का सिंजारा तीज पर मनाया जाता है उसी प्रकार अपने फतेहपुर में गणेश चतुर्थी को चौक च्यानणी  यानी लड़कों के सिंजारे के रूप में मनाया जाता था. भाद्रपद का महीना लगते ही सिक्षा जगत से जुड़े छात्रों व गुरुजनों में उत्साह भर जाया करता था. दोनों ही वर्ग बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे शालीनता और हुडदंग की मस्तियों से भरे त्यौहार चौक च्यानणी का. चार दिन तक सभी विद्यार्थी मौज उड़ाते और रोज उन्हें लड्डू खाने को मिलते. घरों की पोली के आगे विभिन्न देवों का स्वांग रचाए बालक टेर लगाते ' चौक च्यानणी भादुड़ो दे दे माई लाडूड़ो.' बालकों को लड्डू खिलाये जाते और गुरुजनों को भेंट व नारियल समर्पित कर उनके प्रति कृतज्ञता व गुरु भक्ति प्रदर्शित की जाती. इस दौरान झांकियों के साथ साथ नगर से जुड़े गीत गाये जाते जिनमें नगर की परम्पराओं का लालित्यपूर्ण वर्णन होता था. धीरे धीरे समय गुजरने के साथ साथ चौक च्यानणी का त्यौंहार भी कालावाशेष बन कर रह गया है . आज के बालकों के लिए चौक च्यानणी केवल किताबों तक ही सीमित हो  गयी है